1.


“...जिस चीज के साथ बाप का स्नेह है

उससे उतना स्नेह रखना ही

अपने को सौभाग्यशाली बनाना है।

रग-रग में किस के साथ स्नेह था5 तत्वों से नहीं।

स्नेह गुणों से ही होता है।

स्नेह थानहीं।

है और रहेगा।

जब तक भविष्य नई दुनिया न बनी है

तब तक यह अटूट स्नेह रहेगा।

स्नेह आत्मा के साथ और कर्तव्य के साथ ही है

तो फिर शरीर क्या!

अन्त तक साथी रहेंगे।

जिसका बाप के साथ स्नेह है वही अन्त तक स्थापना के कार्य में मददगार रहेंगे। ...”

 

 

 

Ref:-

1969/ 23.01.1969
अस्थियाँ हैं – स्थिति की स्मृति दिलाने वाली

 

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